इस आलेख में हम evm से मतदान पर प्रत्येक चुनाव में होने वाले हंगामा के कारण evm वोटिंग मशीन से मतदान कितना सही कितना गलत समझने का प्रयास करेंगे। साथ ही यह भी समझेंने का प्रयास करेंगे कि आखिर प्रत्येक चुनाव में ऐसा क्यों किया जाता है अर्थात evm पर हंगामा क्यों किया जाता है। कुल मिलकर यह कहना सही सिद्ध होता है कि evm से चुनाव का कथित रूप से DNA test किया जायेगा।
evm से चुनाव का DNA test
evm से चुनाव नया है या पुराना : 2024 में evm (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से मतदान कोई नई बात नहीं है, यदि स्थानीय निकाय चुनाव न होता तो नये मतदाता जिन्होंने 8 - 10 बार मतदान कर भी लिया है, बैलेट पेपर से मतदान के बारे में जान भी नहीं पाते। ऐसे नये मतदाताओं को बैलेट पेपर से चुनाव होने की जानकारी भी इसी कारण मिलती है कि कुछ स्थानीय निकायों के चुनाव वर्त्तमान में भी बैलेट पेपर से किये जाते हैं। evm का पहली बार इस्तेमाल साल 1982 में केरल के नॉर्थ परूर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था।
भारत में पहली बार चुनाव आयोग ने 1977 में सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) को EVM बनाने का कार्य सौंपा गया। 1979 में ECIL ने EVM का प्रोटोटाइप पेश किया, जिसे 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से समक्ष रखा। मई 1982 में पहली बार केरल विधानसभा का चुनाव EVM से कराया गया किन्तु evm से चुनाव सम्बन्धी कोई कानून नहीं था इसलिये न्यायालय में चुनौती मिलने पर परिणाम निरस्त कर दिया गया।
तत्पश्चात 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और evm से चुनाव कराने सम्बन्धी नियम जोड़ा गया। कानून बनने के बाद भी कई वर्षों तक evm का चुनाव में प्रयोग नहीं किया जा सका। 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर evm से चुनाव कराया गया। 1999 में 45 लोकसभा सीटों EVM का इस्तेमाल हुआ। मई 2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल की सभी विधानसभा सीटों पर EVM से मतदान कराया गया।
लोकसभा चुनाव 2004 : अब हमें यह जानना चाहिये की लोकसभा चुनाव 2004 किस प्रकार हुआ था ? बैलेट पेपर से या evm से ?
2004 के लोकसभा चुनाव में सभी 543 सीटों पर EVM से मतदान कराया गया था, तत्पश्चात सभी लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर EVM से ही मतदान कराया जाता है।
- 2004 में किस दल या गठबंधन की सरकार बनी थी ? कांग्रेस (UPA) की।
- क्या 2004 के लोकसभा चुनाव में evm सही था ? हां क्योंकि तब भाजपा की पराजय हुयी थी।
- 2008 में भी यही प्रक्रिया दुहराई गयी, लेकिन evm पर प्रश्नचिह्न नहीं खड़ा किया गया था, क्योंकि भाजपा की पराजय हुई थी।
- 2014 के चुनाव में जब कांग्रेस (UPA) की पराजय हुई तबसे evm का जिन्न निकलने लगा।
- फिर बार-बार न्यायालय में याचिकायें जाने लगी। मात्र evm ही नहीं चुनाव आयोग पर भी प्रश्नचिह्न उठाये जाने लगे।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में भी evm से चुनाव को रोकने का अथक प्रयास किया गया किन्तु चुनाव आयोग ने भी सबको evm की त्रुटि सिद्ध करने के लिये चुनौती दे दिया था और किसी दल ने चुनौती को स्वीकार ही नहीं किया।
- 2024 में ये जानते और समझते हुये कि अब भारत के सभी चुनाव evm से ही होंगे, बैलेट पेपर से चुनाव के युग में पुनर्वापसी संभव नहीं है फिर भी उच्चतम न्यायालय में याचिकायें लगायी गयी जो अंततः निरस्त कर दी गयी।
- 2024 में याचिकायें लाने का एक मात्र लक्ष्य था कि पुनः हार को नहीं स्वीकारेंगे अर्थात स्वयं की कमियां दूर नहीं करेंगे evm-evm चिल्लायेंगे। उच्चतम न्यायालय को इस विषय में एक और आदेश देना चाहिये था कि आगे से evm-evm का हंगामा नहीं किया जा सकता है।
यक्षप्रश्न : evm-evm चिल्लाने वालों के लिये कुछ यक्षप्रश्न हैं और उत्तर मिलने की तनिक भी आशा नहीं है। किन्तु पाठक निष्कर्ष समझ जायेंगे इसलिये ये यक्षप्रश्न यहां दिये जा रहे हैं :
- 2004 - 2014 तक के जितने चुनाव हुये थे क्या उस समय evm सही था ?
- पिछले चुनावों की तुलना में evm की त्रुटियों को सुधारा जाता है या नहीं ?
- जब बैलेट पेपर से चुनाव किये जाते थे; तो क्या ये सच नहीं है कि तब बूथ लूटे भी जाते थे।
- जब बैलेट पेपर से चुनाव किया जाता था; क्या ये सच नहीं है कि तब वोकस वोट भी डाले जाते थे ?
- जब evm-evm चिल्लाया जाता है तब चिल्लाने वाले से कोई यह प्रश्न क्यों नहीं करता कि क्या आप बूथ लूटकर और वोकस वोट से जीतना चाहते हैं ? लेकिन प्रश्न करे तो करे कौन प्रश्नकर्ता तो उनके ही ...... हैं।
evm से मतदान के लाभ
- evm से चुनाव कराने पर एक राष्ट्रीय चुनाव में लगभग 10,000 टन मतपत्र बचाया जाता है। अतः EVM के माध्यम से चुनाव होने पर परोक्षतः पर्यावरण सुरक्षा भी होती है।
- evm का में भी अधिक खर्च होता है किन्तु बैलेट पेपर की तुलना में evm सस्ता ही होता है।
- evm को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना अधिक सरल होता है।
- evm से मतदान कराने पर बूथ लूटकर हारा हुआ प्रत्याशी किसी प्रकार भी जीत नहीं सकता अतः इससे लोकतंत्र मजबूत होता है।
- evm से चुनाव कराने पर समय की भी बचत होती है, मतगणना शीघ्र किया जा सकता है।
evm और न्यायपालिका
यद्यपि विपक्ष ने कई चुनावों से पहले evm की शाख पर बट्टा लगाने का कुचक्र किया और कुछ सीमा तक क्षति पहुंचाने में सफल भी रहे। इसके लिये भी कहीं न कहीं षड्यंत्र किया गया झूठे समाचार प्रकाशित किये, फिर उसको प्रचारित किया गया यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी उस झूठे समाचार का उल्लेख किया गया। एक अन्य बात यह भी है कि विपक्षी विचारधारा को अभी तक ये भ्रम है कि सर्वोच्च न्यायालय उनके अनुकूल ही व्यवहार करेगा, किन्तु पिछले कुछ महीनों से सफल मनोरथ नहीं हो पाते और बार-बार मुँह की खाते हैं।
VVpat से मतगणना और evm से उसका मिलान अथवा बैलेट पेपर से ही मतदान कराना आदि विपक्षी विचारधारा कि मांग थी और 41 याचिकायें लगाई गई थी। विपक्षी विचारधारा को ये तो स्पष्ट ज्ञात था कि इस पर निर्णय क्या होने वाला है किन्तु याचिकाओं का उद्देश्य मात्र इतना था कि सर्वोच्च न्यायालय मात्र एक कड़ी टिप्पणि कर दे फिर उसे लेकर उड़ जायेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने कोई कठोर टिप्पणि क्यों नहीं किया ?
क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय भी यह जानता है कि ये विचारधारा कुछ सकारात्मक हो इस उद्देश्य से कोई याचिका लेकर नहीं पहुंचती, अपितु सर्वोच्च न्यायालय पहुंचती ही इसलिये है कि होगा कुछ नहीं बस कोई कठोर टिप्पणि प्राप्त हो जाये और हमें खुराक मिल जाये।
इसके 3 प्रमुख उदहारण भी हैं :
- धारा 370 हटाने के विरुद्ध मात्र सर्वोच्च न्यायालय से कठोर टिप्पणि की ही अपेक्षा लेकर गये थे।
- नूपुर शर्मा के विरुद्ध कठोर टिप्पणि मात्र की ही अपेक्षा लेकर गये थे।
- मणिपुर की घटनाओं के विरुद्ध मात्र कठोर टिप्पणि की अपेक्षा लेकर ही गये थे।
ऐसे अनेकों घटनायें हैं जिसके लिये विपक्षी विचारधारा न्यायपालिका से मात्र कठोर टिप्पणि की अपेक्षा लेकर ही याचिकायों की झड़ी लगाने लगती है और इस तथ्य को न्यायपालिका नहीं समझे ऐसा कब तक होगा ? इस प्रकार विपक्षी विचारधारा को न्यायपालिका से कठोर टिप्पणि के रूप में मिलने वाली प्राणवायु का मिलना भी बंद हो गया।
संतुलन बनाना : न्यायपालिका संतुलन बनाने के उद्देश्य से विपक्षी विचारधारा के लिये भी कठोर टिप्पणि करती रही है जो कि एक षड्यंत्र था और अब विपक्षी विचारधारा के इस षड्यंत्र से भी परदा हट गया। संतुलन बनाने का प्रयास करना लोकतंत्र की रक्षा के लिये आवश्यक है न कि लोकतंत्र को ही परेशान करने के लिये।
2014 से पूर्व : कुछ लोग ये भ्रम भी पालते हैं कि विपक्ष में जो भी रहेगा ऐसा ही करेगा। अभी कुछ महीने पूर्व ही कर्नाटक में भाजपा की पराजय हुई। लेकिन इसे जाने दिया जाय बात 2014 से पहले की करनी चाहिये, 2014 से पहले भाजपा विपक्षी दल थी, भाजपा या उसके समर्थकों ने कितनी याचिकायें लगायी थी ? एकाध बार भाजपा ने भी evm पर अपनी पराजय का ठीकरा फोड़ने के लिये थोड़ा-बहुत कुछ बोला हो तो अलग बात है जैसे लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था। किन्तु 2014 से पूर्व भाजपा ने भी ऐसे ही evm की शाख पर प्रश्नचिह्न लगाया हो, धूमिल करने का प्रयास किया हो ऐसा नहीं है। तो जो लोग संतुलन बनाने के लिये ये कहते हैं कि पहले भाजपा भी ऐसे ही करती थी वो पहले 2014 से पूर्व जब भाजपा विपक्ष में थी तब की घटनाओं को भी बतायें कि भाजपा ने ऐसा कब-कब किया था।
निष्कर्ष : यहां बैलेट पेपर से होने वाले मतदान के दुर्गुणों को, बूथ लूटने की घटनाओं पर अधिक चर्चा करने की आवश्यकता तो नहीं है किन्तु निष्कर्ष हेतु evm से होने वाले चुनाव की तुलना तो बैलेट पेपर से होने वाले चुनाव के साथ ही की जायेगी। और जब इस प्रकार की तुलना की जायेगी तो बैलेट पेपर से कई गुना अधिक सही है evm से मतदान कराना और जब भी कांग्रेस व सहयोगी पराजित हो तो evm-evm चिल्लाना सही नहीं है, जनता इतनी भी मुर्ख नहीं है।