Election 2024 : चट्टे-बट्टे और चुनाव के मुद्दे

Election 2024 : चट्टे-बट्टे और चुनाव के मुद्दे 

जब प्रधनमंत्री मोदी ने चट्टे-बट्टे कहा तो विमर्श का एक विषय "चट्टे-बट्टे" स्वयं ही बन गये। लेकिन विमर्श करे तो कौन करे स्वयं चट्टे-बट्टे ही "चट्टे-बट्टे" पर विमर्श कैसे करे ? सोशल मीडिया पर विमर्श का विषय बन गये निर्लज्ज "चट्टे-बट्टे"। 

चुनाव के मुद्दे

प्रधानमंत्री मोदी और चट्टे-बट्टे 

लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री ने खुलकर उस अंतरराष्ट्रीय समूह का उल्लेख किया उनके समूह से जुड़े लोगों का भी खुलकर उल्लेख किया और कई बार "चट्टे-बट्टे" कहते हुये चुनौती भी दिया। यदि मीडिया में चट्टे-बट्टे नहीं होते तो मीडिया में विमर्श का बड़ा विषय "चट्टे-बट्टे" ही होता। मीडिया ने इस विषय पर कोई विमर्श ही नहीं किया इससे सिद्ध भी होता है कि मीडिया में चट्टे-बट्टे नहीं "चट्टे-बट्टों की पूरी फौज" है। लेकिन सोशल मीडिया इस "फौज की मौज" मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। 

चट्टे-बट्टे भी परोक्ष रूप से चुनाव में सम्मिलित 

एक काल ऐसा भी था जब चट्टे-बट्टे मंत्रालय तक निर्धारित किया करते थे और एक वर्त्तमान काल है जब इन चट्टे-बट्टों की पोल खुलने लगी है। अपनी पोल खुलते रहने के बाद भी चट्टे-बट्टे भी पूरी तरह निर्लज्ज हैं और परोक्ष रूप से चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। 

चुनावी समर में मात्र सत्ता और विपक्ष ही नहीं है विपक्ष के साथ ये चट्टे-बट्टे भी परोक्ष रूप से चुनाव में सम्मिलित हैं और इसके लिये चुनाव के मुद्दे को निर्धारित करने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी तरफ से ये समूह किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं जिससे वास्तविक मुद्दों पर चुनाव हो अथवा मुद्दों का सही-सही निर्धारण हो सके। 

मोदी ने इन चट्टे-बट्टों को कई बार चुनौती दिया है एक विडियो नीचे दिया गया है जिसमें देखा जा सकता है :

चट्टे-बट्टे चाहते क्या हैं 

मौज : चट्टे-बट्टों के फौज की पहली चाहत मौज है जो पहले हुआ करती थी लेकिन मोदी सरकार ने मौज की मौज ले ली, कई चट्टे-बट्टों ने स्वयं बेरोजगारी और अपने पेट पर लात पड़ने की बात कर चुके हैं। तो उनकी पहली इच्छा मौज पाने की है जो मोदी सरकार नहीं होने देने वाली है। 

देश की दिशा का निर्धारण : एक काल था जब इन्हीं लोगों की आवाज देश की आवाज समझी और मानी जाती थी। आम जनता की आवाज कहीं सुनाई ही नहीं परती थी और देश की दिशा जनता के अनुसार नहीं इन चट्टे-बट्टों के अनुसार निर्धारित की जाती थी। ये आम जनता की आवाज नहीं उठाते थे, अपनी आवाज जनता पर थोप दिया करते थे। 

अर्थ लाभ : अर्थ लाभ प्राप्त करना सबका अधिकार है और सभी चाहते हैं। यदि चट्टे-बट्टे भी अर्थ लाभ चाहते हैं तो कोई बुरी बात नहीं है। इसमें बुरी बात ये है कि अर्थ लाभ के लिये दिशा गलत चुन लेना क्योंकि गलत रास्ते से ही शीघ्र अत्यधिक अर्थ प्राप्ति की जा सकती, सही रास्ते से शीघ्र ही अत्यधिक अर्थ प्राप्ति संभव नहीं है ये सभी जानते हैं, सिद्ध सूत्र है। ये अर्थातुर हैं और अर्थातुर के लिये शास्त्रवचन है "अर्थातुराणां न सुहृन्न बंधुः" जिसका अर्थ है कि जो अर्थातुर होते हैं उसका कोई सुहृद नहीं होता कोई बंधु नहीं होता अर्थात अर्थातुर अर्थ मात्र को ही सबसे ऊपर समझता है। उसके लिये देश भक्ति, धर्म, संस्कृति आदि का भी कोई महत्व नहीं होता है। 

चट्टे-बट्टे किस प्रकार से परोक्षतः चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं 

अब हम आगे ये विमर्श करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि ये अर्थातुर; मौज पाने के लिये किस प्रकार से परोक्षतः चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं ?

देश देख रहा है कि मोदी बारम्बार देश के लिये गंभीर मुद्दे उठा रहे हैं किन्तु ये चट्टे-बट्टे हैं कि भ्रमित करते हुये अपने मुद्दे देश पर थोपना चाहते हैं। 

  1. लोकसभा चुनाव 2024 में मोदी ने कई बार धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होने का, तुष्टिकरण का मुद्दा उठाया है। लेकिन चट्टे-बट्टे हैं की इसे हिन्दू-मुसलमान बता कर इसको मुद्दा बनने नहीं देना चाहते। मान लिया कि हिन्दू-मुसलमान ही मुद्दा है तो क्यों नहीं होना चाहिये ये कभी नहीं बताते सीधे अपनी सोच देश पर थोपना चाहते हैं कि हिन्दू-मुसलमान चुनाव का मुद्दा नहीं हो सकती। जनसांख्यिकीय परिवर्तन का आँकड़ा आया इस पर गंभीर विमर्श की आवश्यकता थी और वर्षों से थी किन्तु वर्त्तमान में भी उन लोगों ने इसे मुद्दा बनने से रोकने का प्रयास किया, हिन्दू-मुसलमान सिद्ध करने का प्रयास किया। 
  2. पाकिस्तान से संबंध और POK चुनाव का बड़ा मुद्दा होना चाहिये, भाजपा ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है किन्तु चट्टे-बट्टे इसे रोकने का प्रयास करते हैं कि पाकिस्तान चुनाव का मुद्दा नहीं होना चाहिये। निरुत्तर रहने वाला प्रश्न ये है कि क्यों नहीं होना चाहिये ? POK भारत का हिस्सा है, पाकिस्तान से कई स्तरों पर बाधायें उत्पन्न की जाती रही है, आतंकवाद फैलाया जाता रहा है, निश्चित रूप से POK और पाकिस्तान चुनाव का मुद्दा होना चाहिये। 
  3. भ्रष्टाचार भी चुनाव का एक प्रमुख मुद्दा है और भाजपा प्रारम्भ से ही भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है लेकिन चट्टे-बट्टे इस मुद्दे को भी चुनाव का मुद्दा नहीं बनने देना चाहते हैं यद्यपि झेंपते हुये थोड़ी चर्चा करते अवश्य हैं किन्तु भ्रष्टाचार को चुनाव का मुद्दा बनने नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि यदि भ्रष्टाचार मुद्दा बना तो सत्ता पक्ष क्लीन स्वीप कर जाएगी। 
  4. विकसित भारत चुनाव का मुद्दा है और भाजपा इसे चुनाव का मुद्दा बताती है, लेकिन वो लोग हैं कि एक बार विकास बोलते तो हैं लेकिन विकसित भारत में विकास सन्निहित है इसे देश को दिखाना नहीं चाहते हैं। यदि विकास चुनाव का मुद्दा है जो कि वो लोग भी बोलते हैं तो बतायें न कि 2004-2014 में कितना विकास हुआ था और उसकी तुलना में 2014-2024 कितना विकास हुआ है। यदि तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत नहीं करेंगे तो विकास के मुद्दे पर कैसी चर्चा होगी सरलता से समझी जा सकती है। 
  5. मंहगाई का मुद्दा सभी चट्टे-बट्टे देश पर थोपना चाहते हैं। यदि मंहगाई मुद्दा है तो ये बताना चाहिये कि 2004-2014 में कितनी मंहगाई थी और 2014-2024 में कितनी मंहगाई रही ? यदि तुलनात्मक आँकड़े नहीं देते तो मंहगाई के मुद्दे पर कैसी चर्चा करते हैं ?

इसी प्रकार और भी बेरोजगारी, गरीबी आदि को चुनाव का मुद्दा कहते हैं, किन्तु किसी भी विषय पर गंभीरता पूर्वक चर्चा नहीं करते कोई आँकड़ा प्रस्तुत नहीं करते। ये एक बार भी नहीं बताते कि पिछली UPA सरकार में कितना और क्या काम हुआ था एवं NDA सरकार ने उसमें कितना काम किया और क्या किया ? यदि कम ही किया हो तो आकड़ों से सही-सही देश के सामने रखो न कि पिछली सरकार ने अधिक अच्छा किया था। 

लेकिन वो जानते हैं कि ऐसा कुछ किया ही नहीं जा सकता यदि UPA सरकार और NDA सरकार के किसी भी विषय पर सम्यक चर्चा की जाय तो तुलना करना संभव ही नहीं होगा, एक तरफ निराशा का अंधकार था और दूसरी तरफ आशा का प्रकाश है। 

किसी भी मुद्दे पर वास्तविक चर्चा नहीं कर सकते इसलिये प्रत्येक मुद्दे का नाम मात्र जपते हैं, जो प्रमुख मुद्दे हैं उसके लिये देश पर अपनी सोच थोपना चाहते हैं कि ये हिन्दू-मुसलमान है, पाकिस्तान है, सांप्रदायिक है चुनाव का मुद्दा नहीं है। मोदी ने चट्टे-बट्टे सम्बोधित करते हुये उन लोगों को यही समझाने का प्रयास किया है। देश के वास्तविक मुद्दे, जनता की सोच को जिसे नब्ज कहा जाता है मोदी भली-भांति समझते हैं। समझते चट्टे-बट्टे भी हैं लेकिन अपनी सोच थोपना चाहते हैं। 

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