अब वोट जिहाद भी होगा वो भी सीना चौड़ा करके - election 2024
सलमान खुर्शीद जो कि कभी भारत के कानून मंत्री रह चुके हैं उनकी भतीजी वोट जिहाद करने की साजिश रच रही है
लोकसभा चुनाव पहले ही की विषयों के कारण विशेष हो चुका है अब इसमें एक कुकर्म का षड्यंत्र भी रचा जा रहा है। उस कुकर्म का नाम है वोट जिहाद। वोट जिहाद का राग अलापने वाली सपा नेत्री मारिया आलम है, जिसकी एक और विशेष पहचान यह है कि ये पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की भतीजी है। एक मंत्रि के घर में भी जिहादन का पनपना क्या ये सिद्ध नहीं करता कि चाहे कुछ भी कह लो, कुछ भी कर लो, कितना भी दे दो मगर सोच वही रहेगा जिहाद करने का ।
जिहाद कितना अच्छा कितना बुड़ा ?
अब टीवी डिबेट में फिर जिहाद पर चर्चा शुरू की जायेगी और जिहाद की स्वर्गीय परिभाषा बताई जायेगी। लोगों को भ्रमित किया जायेगा कि जिहाद अच्छा है ये भी बोला जायेगा कि मारिया आलम ने वोट जिहाद कहा तो उसका कोई गलत अर्थ नही है । क्योंकि जिहाद का स्वर्गीय अर्थ बताया जायेगा।
जिहाद क्या है ?
बुड़ाईयों का अंत करना या अंत करने का प्रयास करना जिहाद है। इस स्वर्गीय शाब्दिक अर्थ से तो जिहाद में कोई बुड़ाई नहीं है बल्कि बुड़ाई के विरुद्ध का संघर्ष ही जिहाद है। लेकिन समस्या का आरम्भ इसके आगे होता है जब ये जानना चाहें की बुड़ाई क्या है, बुड़ा कौन है? कुफ्र करना बुड़ाई है और कुफ्र करने वाला काफिर कहलाता है, काफिर बुड़ा माना जाता है। और अंततः जो इस्लाम नहीं मानता वह काफिर अर्थात् बुड़ा होता है और उसके विरुद्ध संघर्ष जिहाद है।
जिहाद का व्यावहारिक रूप क्या है ?
कुरानी परिभाषा करके जितना भी पवित्र सिद्ध किया जाता हो लेकिन जिहाद का जो स्वरूप पूरी दुनियां में देखने को मिलता है वह बहुत ही वीभत्स है। देखा यही जाता है कि "येन-केन-प्रकारेण" गैर इस्लामी को इस्लाम में लाने का प्रयास करो और यदि किसी भी प्रकार (प्रलोभन, दबाव आदि) से बात न बने तो एक भयंकर नारा लगाकर दुनियां से मिटा दो। उसी भयंकर नारे के साथ जगह-जगह लाखों विस्फोट किये गये हैं; और आतंकवादी को जिहादी कहा जाता है।
जिहाद और आतंकवाद
आतंकवादी को जिहादी और आतंकवाद को जिहाद कहकर बचाव करने का प्रयास किया जाता है। वर्त्तमान में जिहाद की परिभाषा और अर्थ से विचार करना मूर्खता है जब सामने दिख रहा है कि आतंकवाद ही जिहाद है अथवा एक सिक्के का दो पहलू होता है।
यह एक मानसिकता है अर्थात सामान्य सोच है जो कभी किसी जिहादी को बुड़ा नहीं मानता भले ही उसने कितनी भी हत्या कर चुका हो, इसका प्रमाण है आतंकवादियों के जनाजे में बहुत बड़ी भीड़ का जुटना। जिसके लिये आतंकवादी बुड़ा होता वो उसके जनाजे में क्यों जाता, उसके लिये केस क्यों लड़ता, उसके लिये टीवी डिबेटों में बैठकर बचाव का प्रयास क्यों करता ?
ऐसा होता है इसका सीधा मतलब है कि आतंकवादी को बुड़ा नहीं अच्छा समझा जाता है और जो; जहां; जिस प्रकार से उसकी मदद कर सकता है करता है। इसलिये या तो टीवी डिबेटों में जिहाद पर कोई चर्चा ही न की जाय, अथवा यदि की जाय तो चैनल और ऐंकर को इस पूर्वाग्रह के साथ करना चाहिये कि जिहाद और आतंकवाद में कोई अधिक अंतर नहीं है एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिहाद किसी बुड़ायी से संघर्ष नहीं स्वयं में एक बुड़ायी है।
बहस के समय शब्दजाल रचने में थोड़ी देर के लिये आतंकवाद और जिहाद को अलग-अलग सिद्ध किया जाता है लेकिन जो हरेक आतंकवादी स्वयं कहता है कि वो जिहाद कर रहा है, ये भी एक पक्ष है। मीडिया कभी भी जिहाद के पक्षधरों को बेनकाब नहीं करती बल्कि जिहाद को बुड़ा नहीं है ऐसा सिद्ध करने का अवसर प्रदान करती है।
ताजा मामला वोट जिहाद
जिहाद के सम्बन्ध में ताजा समाचार यह है कि जैसे लव जिहाद, जमीन जिहाद आदि किया जा रहा था उसी तरह से अब वोट जिहाद भी किया जायेगा। वोट जिहाद करने के लिये उकसाने वाली नेत्री का सम्बन्ध समाजवादी पार्टी से है जिसका नाम मारिया आलम है और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की भतीजी है। कांग्रेस नेता कभी भारत के कानून मंत्री भी रह चुके हैं। मीडिया द्वारा प्राप्त विडियो नीचे दिया गया है और इसमें सुना जा सकता है कि मारिया आलम क्या कह रही है :
वोट जिहाद
वोट जिहाद के सम्बन्ध में और अधिक विश्लेषण अन्य आलेख में करेंगे। अभी तत्काल क्या आवश्यकता है इस पर चर्चा करेंगे। वोट जिहाद का नारा देना लोकतंत्र के लिये खतड़े की घड़ी है, भारतीय व्यवस्था को चुनौति है, 7 दशकों तक कांग्रेस व अन्य समर्थकों की सरकारों ने जो वृक्ष लगाया था उसका फल है।
वोट जिहाद का नारा राष्ट्र के लिये खतड़े की घंटी है, उसमें भी तब जब एक नेता वो भी देश के पूर्व कानूनमंत्री रहे सलमान खुर्शीद की भतीजी दे रही हो। इससे पहले भी देश की शांति भंग करने के उद्देश्य से कांग्रेस द्वारा गृहमंत्री अमित शाह के आरक्षण संबंधी वक्तव्य से छेड़छाड़ करके जनमानस को उग्र करने का दुष्प्रयास किया गया है। वोट जिहाद का नारा देना भी इसी कड़ी का हिस्सा है, देश की शांति को भंग करने का प्रयास है।
इस पर मात्र चुनाव आयोग को ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय को भी स्वतः संज्ञान लेते हुये त्वरा पूर्वक दण्डित करना चाहिये। साथ ही देश की शांति व्यवस्था के प्रति सभी संस्थाओं को विशेष रूप से सजग हो जाना चाहिये।
हो सकता है सुंदर-सुंदर परिभाषायें गढ़कर चुनाव आयोग, सर्वोच्च न्यायालय आदि को भ्रमित करने का प्रयास किया जाय, क्योंकि इनके समर्थक यही करते हैं, किन्तु चूंकि इनका उद्देश्य देश की शांति भंग करना है अतः इस विषय में इस पूर्वाग्रह के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता भी होगी कि यह देश, समाज, लोकतंत्र के लिये खतड़ा है और इसे शब्दों के जाल में फंसकर सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती।
इसके साथ ही जिहाद समर्थकों को भी कड़ा संदेश देना चाहिये क्योंकि दुनियां में जिहाद की कोई भी अच्छी गतिविधि नहीं देखने को मिलती है, यदि इस्लामिक राष्ट्रों में होता हो तो हो किन्तु भारत ने जिहाद के नाम पर हमेशा बुड़ा ही देखा है, भारत के लिये आतंकवाद और जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और भारत इसका भुक्तभोगी भी है।
अतः शब्दों द्वारा जिहाद को अच्छा कहने मात्र से भ्रमित होना अनुचित होगा और इनके समर्थक आज से ही ये काम शुरू कर देंगे। सुंदर-सुंदर शब्दों के जाल रचेंगे, किताबी बातें कहेंगे और जो भारत सदियों से देख रहा है उसे नकारेंगे।
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