क्या है वोट जिहाद ? Vote Zihad
वोट जिहाद की अवधारणा क्या है ? क्या ये नई अवधारणा है या पहले भी पाया जाता था ?
वोट जिहाद शब्द बिल्कुल नया प्रतीत होता है इसलिये स्वाभाविक रूप से इसके विषय में कई प्रकार के प्रश्न आपके मन में उत्पन्न हो रहे होंगे। इस आलेख में हम वोट जिहाद की अवधारणा को समझते हुये इसके ऐतिहासिक व वर्तमान स्वरूप को भी समझेंगे ।
किसने दिया वोट जिहाद का नारा ?
वोट जिहाद शब्द पहली बार सपा नेत्री मारिया आलम द्वारा प्रयोग किया गया है। मारिया आलम पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की भतीजी भी है। लोकसभा चुनाव 2024 के कालक्रम में एक सभा करते हुये मारिया आलम ने वोट जिहाद का नारा दिया और तालियां भी बजी ।
FIR : इस मामले में प्राप्त समाचार के अनुसार योगी सरकार ने FIR दर्ज करावा लिया है।
डिबेट : टीवी चैनलों पर सपा प्रवक्ता बचाव करने लगे और जिहाद को आंदोलन कहने लगे हैं। कोई ऐसा भी तर्क देने लगा है कि वोट जिहाद का तात्पर्य वोट का प्रतिशत बढ़ाना है। वोट का प्रतिशत बढ़ाना भी अर्थ हो सकता है किन्तु यदि परिप्रेक्ष्य भी वोट प्रतिशत हो तभी यह अर्थ लिया जा सकता है। जो वीडियो प्राप्त हुआ है उसमें परिप्रेक्ष्य वोट प्रतिशत बढ़ाने का न होकर वो है जो हर चुनाव में बंगाल देखता है।
इंडि अलायंस वाले ये भी कहते देखे जा रहे हैं कि वोट जिहाद कोई चर्चा का विषय नहीं है, चुनावी मुद्दा नहीं है, मुद्दा विकास, मंहगाई, रोजगार आदि हैं। ये भी भ्रमित करना ही है। यदि भाजपा और हिन्दू विकास, मंहगाई, रोजगार की बात करना चाहिये तो इंडि अलायंस के नेताओं, मुसलमानों को भी इन्हीं मुद्दों पर बात करनी चाहिये न! इंडि अलायंस वाले वोट जिहाद करें और हिन्दू उसपर चर्चा भी न करे, है न छलावा।
किसी भी डिबेट में जैसा की पूर्व आलेख में चर्चा किया गया था वही हो रहा है, अंततः जिहाद का मनभावन अर्थ समझने के लिये भ्रमित भी किया जायेगा।
वोट जिहाद के संबंध में पूर्व आलेख का लिंक आगे दिया गया है : अब वोट जिहाद भी होगा वो भी सीना चौड़ा करके - election 2024
क्या है वोट जिहाद ?
वोट जिहाद की अवधारणा को समझने से पहले जिहाद को समझना आवश्यक है। यदि संक्षेप में कहा जाय तो जिहाद और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । दोनों में थोड़ा अंतर ये है कि आतंकवाद का समर्थन खुले रूप से नहीं किया जाता भले ही आतंकवादी के प्रति कृतज्ञता हो और जनाजे में शामिल होते हों ।
किन्तु जिहाद आतंकवाद की वह पूर्व स्थिति है जिसका समर्थन खुले में किया जाता है, कुरान से परिभाषित करते हुये सही सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है भले ही भारत आतंकवाद और जिहाद का भुक्तभोगी क्यों न हो।
जिहाद का सीधा तात्पर्य है जो इस्लाम के अनुकूल न हो उसे प्रलोभन, दबाव, प्रताड़ना आदि देकर इस्लाम के अनुकूल करने का प्रयास। यदि काफिर किसी भी प्रकार इस्लाम के अनुकूल न हो तो उसका अस्तित्व मिटा देना यह जिहाद का दूसरा पहलू है जिसे आतंकवाद जाता है।
दुर्भाग्य ये है कि पूरी दुनियां जिहाद और आतंकवाद से त्रस्त है तथापि इसे सही से प्रमाणों के आधार पर परिभाषित तक करने का साहस नहीं किया गया है जबकि मोदी ने भी इसके लिये वक्तव्य देते हुए विश्व को संदेश दिया था ।
वोट जिहाद का तात्पर्य होता है गैर मुस्लिमों (काफिरों) से भी इस्लाम के अनुकूल वोट डलवाना और इसके लिये प्रलोभन, उत्पीड़न, बलात्कार, हत्या आदि उपायों का भी सहारा लेना। यह वोट जिहाद का नारा लगाने वाली मारिया आलम के वक्तव्य से ही सिद्ध होता है।
मारिया आलम ने जो वोट जिहाद में सहयोग न करे उसके लिये हुक्का-पानी बंद करने की बात कही, इससे अधिक कहने का अर्थ था तुरंत गिरफ्तारी इस कारण इतने पर ही रूक गई लेकिन इतना वक्तव्य भी स्वस्थ लोकतंत्र और देश की शांति के लिये खतड़ा है और बुल्डोजर बाबा इस पर उचित विधि सम्मत धाराओं का प्रयोग करते हुये कार्रवाई अवश्य करेंगे ये विश्वास है।
इस्लाम के अनुसार
यहां इस्लाम के अनुसार कहने का तात्पर्य है कि जिस पार्टी को वोट देने से इस्लामिक राष्ट्र बनाने में की दिशा में बढ़ावा मिले; छल-बल का प्रयोग करते हुये, आतंकित करने की आवश्यकता हो तो आतंकित भी करे; जैसे भी हो; अपना वोट तो उस पार्टी को दे ही साथ ही काफिरों का वोट भी उसी पार्टी के लिये जबरदस्ती दिलवाना।
वोट जिहाद का इतिहास
वोट जिहाद शब्द नया लगता है लेकिन इसका इतिहास पुराना है। भारत विभाजन में भी वोट जिहाद का पयोग किया गया था। कई सभी चुनावों में ध्रुवीकृत मतदान अर्थात वोट जिहाद से ही तुष्टिकरण का दौर आरम्भ हुआ था।
पश्चिम बंगाल में वोट जिहाद बड़े पैमाने पर पिछले चुनावों में भी देखा गया था। चुनाव काल से लेकर चुनाव के बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की बहु-बेटियों का बलात्कार किया गया, हत्यायें की गई और आतंकित किया गया। ये वोट जिहाद ही तो था। CPM काल में एक समय ऐसा भी जब 99% तक मतदान देखा जाता था ये भी वोट जिहाद ही था।
मारिया आलम का वक्तव्य : मारिया आलम ने जो वक्तव्य दिया है उसका परिप्रेक्ष्य पश्चिम बंगाल का चुनावी व्यवहार ही है। जिस प्रकार पश्चिम बंगाल में "येन-केन-प्रकारेण" जिसे मुसलमान चाहे उस सरकार को बनाने के लिये, उसके पक्ष में मतदान करने के लिये काफिरों (हिन्दुओं) को बाध्य करना ही है।
पूर्व आलेख में भी हमने स्पष्ट किया था कि इस मामले में चुनाव आयोग, सर्वोच्च न्यायालय तक को भी इस पूर्वाग्रह को रखते हुये विचार करना चाहिये कि यह गलत ही है, स्वस्थ लोकतंत्र के लिये ही नहीं देश की शांति, एकता, अखण्डता के लिये भी खतड़ा है।
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