आ बैल मुझे मार का अर्थ | BackFire IMA | जाने क्या है पूरा विवाद
सुप्रीम कोर्ट में IMA का दाव Backfire हो गया, इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार, अब बाबा रामदेव करेंगे मानहानि का केस
BackFire IMA |
बीते कई वर्षों से बाबा रामदेव और IMA के बीच विवाद चलता रहा है जिसमें एक नया मोड़ आ गया है। बाबा रामदेव ने तो अपने मामले में सुप्रीम कोर्ट से क्षमा याचना करके किसी तरह बचाव कर लिया किन्तु अब निशाने पर IMA स्वयं ही आ गया है। अपने ही बुने जाल में IMA फंसती दिख रही है जिसके लिये एक प्रसिद्ध लोकोक्ति "आ बैल मुझे मार" घटित होते दिख रही है। संभवतः IMA को "आ बैल मुझे मार का अर्थ" ज्ञात नहीं था क्योंकि यह अंग्रेजों के द्वारा बनाई गयी थी, अब बाबा रामदेव बतायेंगे कि "आ बैल मुझे मार का अर्थ" क्या होता है ?
इस पोस्ट में हम इस विषय को गंभीरता से साथ समझेंगे कि विवाद आखिर है क्या और क्यों ? क्या पतंजलि और IMA का विवाद है अथवा आयुर्वेद और एलोपैथ का विवाद है अथवा कोई तीसरा विवाद है जिसकी कहीं चर्चा ही नहीं की जाती है। साथ ही यह चर्चा भी करेंगे की अपने ही दाव में IMA उल्टा कैसे फंस गया है ?
आ बैल मुझे मार का अर्थ
मनुष्य का एक स्वाभाविक लक्षण होता है की सामने वाला भी प्रथम दृष्टि में ही अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रिया दे। जैसे : किसी प्रिय व्यक्ति का मिलते ही मुस्कुराना, किसी विरोधी का आंखे फेरना, कुत्ते का भौंकना, चूहे-बिल्ली आदि का भागना आदि। इसमें दोनों पक्ष एक दूसरे से यही अपेक्षित भी रखता है लेकिन या अनिवार्य नहीं है कि सदा स्वाभाविक क्रिया ही प्रकट हो, किन्तु यदि एक पक्ष स्वाभाविक क्रिया न करे तो दूसरा पक्ष उसे सामान्य नहीं समझता।
जैसे यदि कोई प्रिय मित्र जो सदा मुस्कुरा कर मिलता हो किन्तु यदि कभी न मुस्कुराये तो असामान्य लगता है अथवा कोई विरोधी जो आँखें फेर लेता हो कभी मुस्कुरा दे तो भी असामान्य प्रतीत होता है।
बैल (सांढ़) स्वाभाविक रूप से किसी को भी आस-पास देखे तो मारने के लिये दौड़ता है, किन्तु सदा ऐसा ही करे यह भी आवश्यक नहीं है अर्थात परिस्थिति और मनोदशा के अनुसार नहीं भी मार सकता है जैसे शहरों के बैल। अब जो बैल नहीं मारता हो तो जो कोई ऐसा मुर्ख व्यक्ति भी होता है जो उसे मारने के लिये उकसाता है जैसे लाल रंग का कपड़ा दिखाना, सींगों को पकड़ना आदि। इस प्रकार का व्यवहार करके वह व्यक्ति उस बैल को जो नहीं मारता है; मारने के लिये उकसाता है।
इस लोकोक्ति का भाव जानबूझ कर वो कार्य करना है जिसकी प्रतिक्रिया खतरनाक हो सकता है। मूल भाव जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण कार्य करके स्वयं के लिये खतड़ा उत्पन्न करना है। उस विपरीत प्रतिक्रिया को अंग्रेजी में backfire भी कहा जाता है।
आयुर्वेद और एलोपैथ
आयुर्वेद और एलोपैथ के स्वार्थ में विरोध है, क्रिया और प्रभाव में अंतर है। बाबा कहना समुचित नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति भगवा कपड़ा पहनने मात्र से बाबा नहीं कहा जा सकता। गृहस्थों साधु-सन्यासी को बाबा कह सकते हैं और तीनों वर्ण ब्राह्मण को बाबा कह सकते हैं। पिता के पिता को भी बाबा कहा जाता है।
हम देखते हैं कि रामदेव जिन्हें बाबा रामदेव भी कहा जाता है सांसारिक कर्मों में ही उलझे हैं भले ही भगवा क्यों न धारण करते हों। यदि जनकल्याण करने की बात करें तो जनकल्याण का तात्पर्य होता है आय/लाभ की अपेक्षा किये बिना कार्य करना। पतंजलि आय/लाभ प्राप्त करती है साथ ही कुछ वर्षों पूर्व रामदेव जी ने NGO भी बनाया था। NGO बनाने का भी तात्पर्य है कि आप धन की अपेक्षा रखते हैं और यदि धन की अपेक्षा है तो आप साधु या सन्यासी नहीं माने जा सकते।
यद्यपि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि विवाद पतंजलि और IMA के बीच है किन्तु पुनर्विचार करने पर स्थिति कुछ और संकेत करती है। विवाद रामदेव जी और IMA का नहीं है, विवाद आयुर्वेद और एलोपैथ का है। भारत में लगभग 25 वर्ष पूर्व तक जो वृद्ध व्यक्ति होते थे वो एलोपैथ की दवाओं का उपयोग नहीं करते थे, आवश्यकता होने पर आयुर्वेद से ही अपना उपचार करते थे। किन्तु शनैः शनैः एलोपैथ ने आयुर्वेद का क्षरण किया और जनसामान्य तक अपनी पहुंच बनाई और इतनी अधिक पैठ बना ली कि जनसामान्य आयुर्वेदिक उपचार को लगभग भूल ही गये।
आयुर्वेद का जो मूल स्वरूप है उस स्वरूप में पुनः स्थापित करने के लिये एलोपैथ का उसी प्रकार क्षरण करना और राजकीय संरक्षण प्राप्त करना अपेक्षित हो जाता है जो इससे पूर्व एलोपैथ न आयुर्वेद के साथ किया था। यद्यपि विभिन्न आयुर्वेदिक कंपनियां भी आय अर्जित करने के उद्देश्य से ही व्यापार करती है और उनका उद्देश्य आयुर्वेद की पुनर्स्थापना करना नहीं है अपितु ऐलोपैथ के द्वारा जो लूट मचाई जा रही है उस लूट में अपना भाग प्राप्त करना है।
उद्देश्य जब अर्थ/व्यापार हो संबंधित प्रतियोगियों से विवाद होना सामान्य सी बात है। पतंजलि का जनसामान्य तक पहुंच बना लेना निश्चित रूप से एलोपैथ के लिये हानिकारक है इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती। किन्तु इस आधार पर विवाद भी नहीं हो सकता, विवाद हेतु उचित समय पर एक-दूसरे की कमी या गलती को पहचान कर प्रहार करना आवश्यक होता है और व्यापार का या सामान्य नियम है।
न्यायालय में विवाद जाना : न्यायालय में विवाद को कानूनी पक्ष के आधार पर ही लाया जा सकता है, यदि कानूनी पक्ष न हो तो मात्र इस आधार पर न्यायालय में विवाद नहीं लाया जा सकता है कि उसके व्यापार से हमें हानि हो रही है। न्यायालय में कानूनी आधार देते हुये यह विषय होना चाहिये कि विरोधी पक्ष अनुचित तरीकों को अपनाकर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है जिससे हमारी हानि हो रही है।
एलोपैथ जिसका प्रतिनिधित्व IMA कर रहा है बार-बार कानूनी तरीकों से पतंजलि को न्यायालय में घसीटता रहा है और यदि कोई भी पक्ष कानून की दृष्टि में गलत है तो उसके लिये कानूनी कार्रवाई होना किसी प्रकार से गलत नहीं है, सही है।
सनातन और क्रिश्चियन
यहां आकर एक नये दृष्टिकोण की भी आवश्यकता पड़ती है कि IMA तो एलोपैथ का प्रतिनिधित्व करता है, किन्तु क्या पतंजलि भी आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व कर रहा है ? इसका स्पष्ट उत्तर है कि नहीं पतंजलि आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है। अतः अब यह खण्डित हो जाता है कि विवाद आयुर्वेद और एलोपैथ का है। यद्यपि :
- प्रथम दृष्टया यह विवाद पतंजलि और IMA का प्रतीत होता है।
- पुनर्विचार करने पर आयुर्वेद और एलोपैथ का प्रतीत होता है।
- किन्तु गंभीरता पूर्वक विचार करने पर सनातन और क्रिश्चियन का प्रतीत होता है।
यदि आयुर्वेद और एलोपैथ का विवाद होता तो मात्र एक पतंजलि को ही क्यों विवाद में घसीटा जाता यह एक यक्षप्रश्न है जो बताता है कि विवाद आयुर्वेद कर एलोपैथ का नहीं है। यदि ऐसा होता तो और भी बहुत सारी कंपनियां हैं और सबके साथ विवाद होता। विवाद मात्र कंपनियों के साथ ही नहीं होता अपितु उन लोगों (हकीमों) के साथ भी होता जो हर जगह शर्तिया इलाज, ठीक न होने पर पैसे वापस, ठीक होने की गारंटी देते रहते हैं।
रामदेव जी से ही विवाद क्यों : मात्र पतंजलि या रामदेव जी से ही विवाद क्यों होता है इसे भी गंभीरता से समझने की आवश्यकता है। हमने देखा है कि रामदेव जी ने योग का किस प्रकार अन्तरराष्ट्रीयकरण किया, यद्यपि अंतरराष्ट्रीयकरण में PM Modi की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। तथापि रामदेव जी का भी योगदान कम नहीं आंकना चाहिये।
योग और आयुर्वेद का अंतरराष्ट्रीयकरण करके एलोपैथ को तो रामदेव जी ने अभूतपूर्व हानि पहुंचाया ही है, साथ ही साथ एक दूसरा पक्ष भी है जो कभी कहीं चर्चा नहीं की जाती मीडिया ने आंखों पर पट्टी लगा रखी है वो है IMA का धर्मान्तरण कराना। IMA मात्र एलोपैथ के लिये काम नहीं करती धर्मांतरण का काम भी करती है और इस प्रकार की कई घटनायें देखी गयी है।
रामदेव जी का योग धर्मांतरण में बाधक : रामदेव जी का योग धर्मांतरण में बाधक मात्र सिद्ध नहीं हो रहा है अपितु विपरीत प्रभाव भी उत्पन्न कर रहा है और यहां से आरम्भ होता है सनातन व क्रिश्चियन का विवाद। यही कारण है कि बार-बार पतंजलि को ही नहीं रामदेव जी को व्यक्तिगत रूप से भी विवाद में घसीटा जाता है।
रामदेव जी की क्षमायाचना : रामदेव जी ने पतंजलि अथवा व्यक्तिगत गलतियों के लिये सर्वोच्च न्यायालय में क्षमायाचना किया जिस प्रकार के निर्देश मिला तदनुसार पुनः सुधार भी किया क्योंकि रामदेव जी के द्वारा भी सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना हुई। सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के आधार पर पतंजलि की 14 दवाओं का लायसेंस भी रद्द किया गया और उत्तराखंड सरकार (लायसेंसिंग अथॉरिटी) द्वारा भी उचित विधिक कार्रवाई करने की बात कही गयी है।
रामदेव जी का क्षमायाचना करना, 14 प्रोडक्टों का लायसेंस का उत्तराखंड सरकार द्वारा रद्द करना IMA के लिये हर्षकारक रहा। किन्तु क्षमायाचना करते हुये भी रामदेव जी ने एलोपैथ को pseudo science (छद्म विज्ञान) भी कहा और ये भी कहा कि हम जो इलाज करते हैं उसे सिद्ध कर सकते हैं।
विवाद में नया मोड़
अब तक विवाद जो था उस विवाद में अचानक एक नया मोड़ भी आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने IMA के मंहगी दवा/इलाज को भी सही करने की दिशा में आगे बढ़ गई। सर्वोच्च न्यायालय का IMA के लिये जो कहा उसका भाव ये था कि हमारे पास ये भी सूचना है कि आप अनावश्यक और मंहगी दवाओं का प्रयोग करते हैं मंहगा इलाज करते हैं इसको रोकने प्रयास करना होगा, सुधार करना हो। अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने यह माना की रामदेव जी का तो सुन ही रहे हैं किन्तु IMA भी सही नहीं है उसमें भी बहुत कुछ गलत हो रहा है जिसमें सुधार करने की आवश्यकता है।
IMA के अध्यक्ष का इंटरव्यू : फिर सुप्रीम कोर्ट ने IMA के प्रति जो कहा उसके लिये IMA के अध्यक्ष डॉ. आर वी अशोकन ने PTI को यह बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जो एलोपैथ को लेकर कहा वह गलत है डाक्टरों को हतोत्साहित करने वाला है - "IMA और डॉक्टरों के तौर-तरीकों की आलोचना दुर्भाग्यपूर्ण है, सुप्रीम कोर्ट के सामने असल मुद्दा पतंजलि के विज्ञापनों से जुड़ा था, न कि पूरे चिकित्सा क्षेत्र से"और कहते-कहते यहां तक कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट को यह शोभा नहीं देता।
अवमानना : पतंजलि के वकील मुकुल रोहतगी ने इसे न्यायिक प्रतिक्रिया में हस्तक्षेप करना बताया और IMA अध्यक्ष के विरुद्ध मानहानि का केस चलाने की मांग किया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
उपरोक्त न्यायिक तथ्यों का सन्दर्भ विडियो भी नीचे दिया गया है :
निष्कर्ष : कुल मिलाकर निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि IMA ने जो दाव चला था वो दाव पहले तो IMA के लिये भी उल्टा पड़ गया और फिर IMA अध्यक्ष का इंटरव्यू देना तो आग में घी के समान हो गया है। IMA को भी सुधार तो करना ही होगा साथ ही IMA अध्यक्ष को सर्वोच्च न्यायालय के मानहानि का भी सामना करना होगा। इसे कहते हैं "आ बैल मुझे मार"